माँ गाँधारी कृष्ण को क्या शाप देती हैं

 

माँ गाँधारी कृष्ण को क्या शाप देती हैं, और मृत्यु कैसे होती हैं, विष्णु भगवान का दसवां चर्चित अवतार कौन सा हैं? 


महाभारत ' में कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त होने के बाद कौरवों की माँ गाँधारी कृष्ण को क्या शाप देती हैं ! 

' महाभारत ' में कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त होने के बाद कौरवों की माँ गाँधारी कृष्ण को शाप देती हैं । कृष्ण ने यद्यपि धर्म की रक्षा की है , उन्होंने गाँधारी के सौ में से एक भी पुत्र को जीवित न रहने देकर एक माँ के हृदय को तोड़ा है ।

गाँधारी का शाप :-

 गाँधारी शाप देती हैं कि वे अपनी आँखों के सामने अपनी सन्तानों और उनकी भी सन्तानों को मरते हुए , और अपना नगर नष्ट होते हुए देखेंगे । छत्तीस वर्ष के बाद यह शाप फलीभूत होता है , कृष्ण और बलराम दोनों अपने समस्त परिवारजनों को , एक मामूली से झगड़े पर - कि महाभारत के युद्ध में कौन सही था और कौन गलत - आपस में लड़कर मरते हुए देखते हैं इसके बाद बलराम अपने जीवन से निराश हो जाते हैं और उनके प्राण नाग का रूप लेकर उनके शरीर से निकल जाते हैं । 

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बलराम और कृष्ण की मृत्यु:-

बलराम की मृत्यु के कुछ समय बाद कृष्ण की भी मृत्यु हो जाती है ; एक बहेलिया उनके पैर के अंगूठे को हिरन की नाक समझकर उन्हें जहर - भरा तीर मार देता है । बहेलिये का तीर कृष्ण के बाएँ पैर के तलवे को लगता है । अपनी बाँसुरी बजाती मूर्तियों में कृष्ण सामान्यतः अपने बाएँ पैर पर खड़े होते हैं , और उनका दायाँ पैर घूमकर उसमें फँसा होता है । यह शिव के खड़े होने के विपरीत है ; वे अपने दायें पैर पर खड़े होते हैं और बायाँ उसमें फँसा होता है । बायाँ पैर भौतिक सच्चाई को व्यक्त करता है , क्योंकि यह धड़कते हृदय की दिशा में होता है , जबकि दायाँ पैर आध्यात्मिक सत्य को व्यक्त करता है , क्योंकि यह पक्ष बाएँ की अपेक्षा शान्त और स्थिर होता है , कृष्ण बाएँ पैर पर जमकर खड़े होते हैं , परन्तु उनका दायाँ पैर भी धरती पर टिका होता है , जिसका अर्थ है कि भौतिक सत्य आध्यात्मिक सत्य को भी स्वीकार कर रहा है ।

 शिव , इसके विपरीत दाएँ पैर पर ही सारा शरीर टिकाए खड़े होते हैं , यानी उनका पूरा बल आध्यात्मिक सत्य को ही प्राप्त है ; और उन्हें एकपाद शिव कहा जाता है ।

मृत्यु के समय कृष्ण ने उलटा काम किया , उन्होंने अपना बायाँ पैर दाएँ पर घुमाकर रखा जिससे उनका बायाँ तलवा दिखाई देने लगा । दूसरे शब्दों में कहें तो पृथ्वी पर जब कृष्ण का समय समाप्त होने लगा , विष्णु ने बाएँ पैर से व्यक्त होने वाले प्रवृत्ति - मार्ग का त्याग कर दिया , और दायें पैर से व्यक्त होने वाले निवृत्ति - मार्ग को स्वीकार कर लिया । उनके संसार को स्वीकार करने वाले इससे पहले के अवतार अब क्षीण हो रहे थे , क्योंकि द्वापर युग समाप्त हो रहा था , और चौथा युग कलियुग आरम्भ हो गया था ।

विष्णु के दसवा अवतार:-

 विष्णु के दस अधिक चर्चित अवतारों में नवाँ अवतार बलराम का न होकर बुद्ध का है । कुछ हिन्दू धर्म ग्रन्थों का मानना है कि विष्णु ने पशुओं के प्रति करुणा व्यक्त करने के लिए बुद्ध का अवतार धारण किया , जिससे उनकी बलि की प्रथा समाप्त की जा सके , उनके प्रति अहिंसा का व्यवहार किया जाए । निरामिष आहार की परम्परा आरम्भ की जाय । 

दूसरे ग्रन्थों का कहना है कि विष्णु ने बुद्ध का अवतार वैदिक प्रथाओं को समाप्त करने के लिए लिया , जिससे दुनिया अपने विनाश के लिए तैयार हो सके । बौद्ध मतावलंबी इन दोनों में से किसी भी बात को स्वीकार नहीं करते , उनके अनुसार चतुर हिन्दू उन्हें भी अपनी ही परम्परा में शामिल करने के उद्देश्य से ऐसा कहते हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से यह मानना होगा कि विष्णु के बुद्ध अवतार की धारणा राजनीतिक उद्देश्य से की गई , यद्यपि दार्शनिक दृष्टि से बुद्ध अवतार सृष्टि की समाप्ति का ही सूचक है ।

 ऋग्वेद में कहा गया है कि कामना सृष्टि की उत्पत्ति का कारण है । क्योंकि नारायण रूपी आध्यात्मिक शक्ति ने स्वयं को जानना चाहा , इसलिए ब्रह्मा विष्णु के कमल से उत्पन्न हुए और ब्रह्माण्ड विकसित हुआ । इस प्रकार काम , अर्थात् इच्छा , एक जीवमान देवता है । परन्तु बौद्ध चिन्तन में काम को मार की संज्ञा दी गई है , और इच्छा को दानव माना गया है । वही सब प्रकार के दुखों का कारण है । यदि कोई दुखों से मुक्ति पाना चाहता है तो उसे कामना का परित्याग करना पड़ेगा । यह होगा तो सब कार्य कलाप रुक जाएगा , और जीवन समाप्त हो जाएगा । यह तपस्वी का मार्ग है , निवृत्ति मार्ग है , जो बौद्धों के निर्वाण की ओर ले जाता है , जब दीपक की लौ बुझ जाती है , और यह विचार हिन्दुओं की मोक्ष धारणा के समीप है , जिसमें जीवन के चक्र से मुक्ति प्राप्त हो जाती है ।

सौंदर्य को देखने के लिए अपनी आँखें नहीं खोलेंगे । देवी को स्वीकार नहीं किया जाएगा । न माया रहेगी , न ब्रह्माण्ड , न वस्तुपरक सच्चाई रहेगी , न मनुष्य प्रकृति को देखेगा , मानवी चेतना का उदय नहीं होगा , केवल प्रकृति शेष रह जायेगी , पुरुष नहीं रहेगा । इन दोनों मौलिक तत्वों का विघटन विनाश में व्यक्त होगा ।

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