विष्णु भगवान के दसवें अवतार कल्कि भगवान का रहस्य

 कल्कि भगवान का रहस्य



अपने बच्चों को ' महाभारत ' की कथा सुनाते समय लोग उन्हें एक महत्त्वपूर्ण बात बताना भूल जाते हैं । वह यह कि कृष्ण के बड़े भाई बलराम युद्ध में भाग लेने से इन्कार कर देते हैं । जिस समय कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध में पाण्डवों को विजय दिलाने में लगे होते हैं , बलराम तीर्थ यात्रा करने चले जाते हैं क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि मारकाट क्यों मचाई जा रही है । 

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कल्कि भगवान को किसका अवतार माना गया हैं? 

कुछ पुराणों में बलराम को विष्णु की शय्या बने शेषनाग का अवतार बताया गया है , जिनको साथ लेकर वे पृथ्वी पर उतरते हैं । परन्तु कुछ अन्य पुराणों में , विशेषकर दक्षिण भारत के ग्रन्थों में , उन्हें दस अवतारों में से नवें , विष्णु का अवतार बताया गया है । उनके हाथों में खेती - बाड़ी के हल और खुरपा इत्यादि यंत्र हैं , जबकि कृष्ण के हाथ में पशु चिकित्सा के मंत्र हैं । इससे प्रतीत होता है कि प्राचीन भारत में ये दोनों देवता आवश्यक आर्थिक क्रिया - कलापों के देवता थे , परन्तु बाद में उन्हें आध्यात्मिक महत्ता प्रदान कर दी गई लेकिन फिर भी वे एक - दूसरे से जुड़े रहे । 

बलराम विष्णु के बजाय शिव के ज़्यादा समीप आ जाते हैं? 

कृष्ण के माध्यम से विष्णु जीवन से जुड़ते हैं , जिसे प्रवृत्ति मार्ग कहा जाता है , और बलराम के माध्यम से वे तपस्या का जीवन स्वीकार करते हैं , जिसे निवृत्ति मार्ग कहा जाता है । बलराम यद्यपि कृष्ण के बड़े भाई हैं , परन्तु अवतारों की सूची में उनका नाम कृष्ण के बाद आता है जिससे यह ध्वनित होता है कि विष्णु की कथाओं में बलराम की अपेक्षा कृष्ण को ज़्यादा पसन्द किया जाता है । बलराम अपने छोटे भाई की तरह न चतुर कूटनीतिज्ञ हैं , और न उनकी तरह घनघोर प्रेमी । उड़ीसा स्थित पुरी के मन्दिर में दुनिया के स्वामी जगन्नाथ के रूप में कृष्ण की पूजा की जाती है , उनके साथ उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम हैं प्राचीन कथा के अनुसार बलराम का रेवती के साथ विवाह हुआ है , और उनकी वत्सला नामक एक पुत्री भी है , परन्तु पुरी के मन्दिर की परम्परा में उन्हें शिव की तरह तपस्वी बताया जाता है जिन्हें भंगपान बहुत प्रिय है , और जो स्त्रियों से दूर रहते हैं । आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में स्त्रियों की उपेक्षा भौतिक सच्चाइयों की उपेक्षा मानी जाती है । 

कृष्ण जहाँ पाण्डवों के साथ धर्म की रक्षा का प्रयत्न करने में लगे रहते हैं , बलराम उसकी परवाह नहीं करते । वे तीर्थ करने निकल जाते हैं और स्थितियों को बिगड़ने देते हैं । इसलिए बलराम विष्णु के बजाय शिव के ज़्यादा समीप आ जाते हैं , और कृष्ण के बाद हुए नवें अवतार के रूप में संसार के अन्त की सूचना देते हैं ।

शिव की तरह , जो देवता और असुर दोनों को समान रूप से समर्थन देते हैं , बलराम भी कौरव और पाण्डव दोनों को बराबर मानते हैं । वे भीम और दुर्योधन दोनों को गदा युद्ध का प्रशिक्षण देते हैं । चूँकि वे महसूस करते हैं कि कृष्ण पाण्डवों का अधिक पक्ष लेते हैं , इसलिए वे भीम के ऊपर दुर्योधन को ज़्यादा महत्त्व देते हैं । 

तीर्थयात्रा से लौटने पर उन्हें ज्ञात होता है कि भीम ने गदा - युद्ध के एक नियम का उल्लंघन करके दुर्योधन को मार डाला है , तो वे क्रोध में भरकर अपना हल उठा लेते हैं और भीम को मार डालने के लिए तैयार हो जाते हैं । परन्तु कृष्ण उन्हें इससे रोकते हैं , और कहते हैं कि युद्ध अब समाप्त हो गया है तथा धर्म की स्थापना करने के लिए कभी - कभी नियमों को तोड़ना भी पड़ता है । दुर्बलों की सहायता के लिए नियम बनाए जाते हैं , लेकिन दुर्योधन ने द्रोपदी के वस्त्र हरण करके उसकी निर्बलता का लाभ उठाया था , इसलिए उसने नियमों से सुरक्षा पाने का अधिकार भी खो दिया था । 

बलराम को कृष्ण का यह तर्क सही लगता है , और वे अपना हल नीचे कर लेते हैं । बलराम कठोर देवता हैं । वे जल्दी क्रोधित हो उठते हैं , परन्तु जल्द ही शान्त भी हो जाते हैं । उनका स्वभाव बहुत सरल है । शिव के गुण भी यही हैं । कृष्ण की चालबाजियाँ उनकी समझ में नहीं आतीं । कृष्ण की तर्क पद्धति उनकी समझ से बाहर है जो उन्होंने गीता में व्यक्त की है , और जिसके द्वारा उन्होंने युद्ध का समर्थन किया है । सम्पत्ति का विचार भी उनकी समझ से परे है । उनकी दृष्टि में सम्पत्ति का पूर्णतः त्याग ही सबसे बड़ा ज्ञान है । परन्तु बलराम कृष्ण पर विश्वास करते हैं । वे मानते हैं कि छोटे भाई के शब्दों में ज्ञान है शायद सम्पत्ति के साथ जीवन बिताने का एक दूसरा मार्ग भी है - उसके प्रति निरासक्त होना । लेकिन यह इच्छा का दमन करने से सम्भव नहीं है , बल्कि उसके साथ रहकर प्रादेशिक व्यवहार के मूल की खोज करने से ही सम्भव है ।


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