हनुमान जी की जन्म की अनेक कथाएँ, जो आपको नहीं पता होगी?

 आंजनेयाय नमः हनुमान जी के जन्म की अनोखी कहानी जो आपने कभी नहीं सुनी


हनुमान अंजना सूनुः वायु पुत्रो महाबलः 

रामेष्टः फाल्गुन सखः पिंगाक्षो अमितविक्रमः 

उदधिक्रमणश्चेव सीताशोक विनाशकः 

लक्ष्मण प्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा 

एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः 

स्वापकाले पठेत नित्यम , यात्राकाले विशेषत् 

तस्य मृत्यु भयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् 


अंजना -सुत हनुमान , 

वायु के शक्तिशाली पुत्र राम और 

अर्जुन के मित्र क्रुद्ध नेत्रधारी , 

असंभव कार्यों को करने वाले , 

सीता के दुखहर्ता , 

लक्ष्मण के प्राणदायक , 

दशानन के शत्रु , 

प्रातःकाल तथा यात्रा के समय , 

जो बारह नामों वाले इस पवित्र वानर का स्मरण करता है , 

उसे मृत्यु का कभी भय नहीं रहेगा , 

और वह सदा विजयी होगा । -हनुमत ध्यानम् 


प्राचीन ऋषिगण नामों के चयन को बहुत महत्त्व देते थे । शब्द और उसके अर्थ के बीच गूढ़ संबंध होता है और यही किसी देवता के नाम का बार - बार उच्चारण यानी जप कहे जाने वाले

योग का आधार है । ऐसी मान्यता है कि हनुमान को अपनी समस्त शक्तियाँ " राम " शब्द के निरंतर जप से प्राप्त हुई हैं । उनका सबसे प्रचलित नाम हनुमान है और इसके दो अर्थ हैं । एक , वे विशिष्ट अथवा विरूपित ठुड्डी ( हनु ) से युक्त ( मान ) हैं । 

यह तब हुआ जब वे बचपन में सूर्य को पकड़ने के लिए उसकी ओर लपके थे । 

हनुमान जी को अंजनिपुत्र नाम कैसे प्राप्त हुआ:-

दूसरा , वह जिसके अहं या बुद्धि ( मन ) का नाश ( हन ) हो गया हो । उनका दूसरा सबसे अधिक प्रचलित नाम आंजनेय है , जिसका अर्थ अंजनिपुत्र अथवा अंजना का पुत्र है । उन्हें अपने पिता वायुदेव से अनेक नाम प्राप्त हुए हैं । उन्हें वायुपुत्र , पवनपुत्र , पावकात्मज तथा मारुति नाम से भी जाना जाता है और ये सभी नाम उन्हें वेदों में वर्णित वायु के पुत्र के रूप में दर्शाते हैं । उन्हें केसरी का पुत्र होने के नाते केसरीसुत एवं केसरीनंदन तथा केसरीप्रिय भी कहा जाता है जिसके द्वारा उनका संबंध अपने वानर पिता केसरी से पता लगता है । आश्चर्य की बात है कि उनका रुद्र से संबंधित एक भी नाम नहीं है ।

किन किन नामों से जाने जाते है हनुमान जी? 

 रक्षक के रूप में स्मरण करते समय उन्हें बजरंगबली कहते हैं , यह वास्तव में संस्कृत शब्द वज्र और अंग का बिगड़ा हुआ रूप है , जिसका अर्थ है वह , जिसके अंग वज्र के समान कठोर हैं । उनका एक अन्य नाम संकटमोचन है याने वह , जो दुख एवं संकट से हमारी रक्षा करता है । उन्हें वीर और महावीर भी कहा जाता है जिससे उनकी महान शक्तियों का पता लगता है । 

कभी - कभी उन्हें पंचवक्तृ याने पाँच मुख वाला और वानरों का देवता कपीश्वर भी कहा जाता है । हनुमान के जन्म के साथ अनेक कथाएँ जुड़ी हैं । यह भी कहा जाता है कि उनके दो देव पिता तथा एक वानर पिता हैं , किंतु उनकी माता के विषय में कभी कोई विवाद नहीं हुआ । जैसा कि हमने देखा , विभिन्न नामों से उनका किसी का " पुत्र " होने की पहचान होती है परंतु उनका केवल एक ही नाम है जो उनकी माता से जुड़ा है । 

हनुमान जी के जन्म की अन्य कथा

अंजना को सदा उनकी माता के रूप में स्वीकार किया गया है । यद्यपि उन्हें सामान्य रूप से पवनदेव का पुत्र माना जाता है , एक कथा यह भी है कि वे वास्तव में शिव एवं पार्वती के पुत्र थे और उनका जन्म शिव के अंश से हुआ था । जिस समय विष्णु ने असुरों को परास्त करने के लिए मोहिनी रूप धारण किया , उस समय शिव वहाँ उपस्थित नहीं थे । 

जब उन्हें मोहिनी के अप्रतिम सौंदर्य के बारे में पता लगा तो वे मोहिनी को देखने के लिए लालायित हो उठे । वे विष्णु के वैकुंठ धाम पहुँचे और उनसे वह रूप दिखाने के लिए कहा । जब शिव ने मोहिनी का वह मनोहर रूप देखा तो कहते हैं , शिव जैसे परम तपस्वी को भी मोहिनी से प्रेम हो गया । उन्होंने उसका पीछा किया और उसका आलिंगन कर लिया । 

उस क्षण , उनका अंश , जो उनकी महान तपस्या द्वारा निर्मित हुआ था , बाहर निकल गया । शिव के वीर्य को , जो एक पत्ती पर गिरकर चमक रहा था , सप्त ऋषियों ने थाम लिया । उचित समय आने पर उन्होंने वह अंश , वायुदेव को दे दिया जो उसे लेकर वन में पहुँच गए जहाँ अंजना तप कर रही थी । वह एक पहाड़ी पर बैठकर शिव की आराधना कर रही थी और उनसे पुत्र का आशीर्वाद माँग रही वायुदेव हवा के मंद झोंके के रूप में अंजना के पास पहुँचे और शिव का दिव्य अंश कान के रास्ते उसके गर्भ में डाल दिया । समय आने पर , शिव के इसी अंश से बाल - वानर का जन्म हुआ जिसे हनुमत ( संस्कृत में ) कहा गया । 

आनंद रामायण में हनुमान को किस का भाई माना गया है? 

आनंद रामायण में हनुमान को राम का भाई माना गया है जिसका जन्म उसी पवित्र रस से हुआ , जिससे दशरथ की पत्नियाँ गर्भवती हुई थीं । अंजना विलक्षण पुत्र का वरदान पाने की आशा में अनेक वर्षों से शिव की आराधना कर रही थी । 

हनुमान जी कौन से शिव जी के रुद्र रूप हैं? 

शिव ने अंजना को बताया कि वे उसकी तपस्या से प्रसन्न हैं और वे ग्यारहवें रुद्र के रूप में उसके गर्भ से जन्म लेंगे । उन्होंने कहा कि वह अपने हाथ को कटोरी के आकार में मोड़कर ऊपर आकाश की ओर कर ले और फिर धैर्य से प्रतीक्षा करे । इसी बीच , अयोध्या के राजा दशरथ संतान प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ कर रहे थे ।

 इसके फलस्वरूप , उन्हें दिव्य खीर प्राप्त हुई जिसे उनकी तीनों पत्नियों को खाना था । वह खीर खाने के बाद राम , लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न का जन्म दिया । दैवी संयोग से , वायुदेव ने बाज के रूप में झपट्टा मारा और वे दशरथ की सबसे छोटी पत्नी , सुमित्रा के हाथ में रखी खीर का कुछ भाग चोंच में ले गए । वायुदेव ने खीर का अंश अंजना के खुले हाथों में गिरा दिया , जिस समय वह पहाड़ी पर बैठकर तपस्या कर रही थी । 

उसने वह मीठा ग्रास खा लिया और उसके फलस्वरूप अंजना के गर्भ से हनुमान का जन्म हुआ । इस कारण हनुमान को राम का सौतेला भाई भी माना जाता है । 

हनुमान की जन्म की एक और कथा हैं? 

एक अन्य कथा इस प्रकार है कि अंजना , गौतम ऋषि और उनकी पत्नी अहिल्या की पुत्री थी । एक बार देवराज इंद्र ने गौतम का रूप धरकर धोखे से अहिल्या को कामासक्त कर दिया । जब गौतम वापस लौटे तो उन्होंने दोनों को शाप दिया । अहिल्या का मानना था कि उसकी पुत्री ने यह बात गौतम को बताई थी । इसलिए उसने अंजना को वानर बनने का शाप दिया था । अंजना ने शाप के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए तपस्या करने का निर्णय लिया ।

 वह तपस्या में इतनी लीन हो गई कि चींटियों ने उसके शरीर पर बाँबी बना ली । वायुदेव को उस पर दया आ गई । वे उसे नियमित रूप से बाँबी के छिद्र में से भोजन देते थे । उसी वन में शिव और पार्वती विभिन्न पशुओं का रूप धारण करके क्रीड़ाएँ करने आते थे । एक बार जब वे वानर रूप में क्रीड़ा कर थे तो शिव का वीर्य स्खलित हो गया लेकिन पार्वती उनके अंश की तीव्रता को सहन नहीं कर सकीं । तब वायुदेव ने उसे लेकर अंजना को दे दिया । 

तीन महीने बाद , अंजना के मुख से शिशु वानर के रूप में हनुमान प्रकट हुए । ( एक अन्य अध्याय में इस कथा को विस्तार से बताया जाएगा ) । वाल्मीकि रामायण में हनुमान के जन्म की अलग कथा मिलती है । उसमें पुंचिकस्थला नाम की अप्सरा को एक ऋषि ने शाप दिया और उसे पृथ्वी पर वानर के रूप में जन्म लेना पड़ा लेकिन उसके पास स्वेच्छा से मनुष्य रूप धारण करने की शक्ति थी । एक बार जब वह सुंदर रूप धरकर पहाड़ी के निकट टहल रही थी तो हवा से उसके वस्त्र ऊपर उठ गए । 

उसके सुंदर अंगों को देखकर वायुदेव आकर्षित हो गए और उसके वस्त्रों को हटाकर उसके भीतर प्रवेश कर गए । अंजना ने इस उल्लंघन को महसूस किया । वह उस अदृश्य प्रेमी को शाप देने ही वाली थी कि वायुदेव उसके समक्ष प्रकट हुए और अंजना को अक्षत योनि होने का वचन दिया तथा उसे यह वरदान भी दिया कि उसका होने वाला पुत्र बल में स्वयं वायुदेव के समान होगा ।


शिव पुराण मे कौन सी कथा दी गयी हैं? 

 शिव पुराण में दी गई कथा इससे थोड़ी भिन्न है । एक बार पार्वती ने अपने पति को " राम " मंत्र दोहराते सुना तो ऐसा करने का कारण पूछा । शिव ने उत्तर दिया कि राम नाम का मंत्र बहुत शक्तिशाली है क्योंकि यह परम सत्य को दर्शाता है और विष्णु ने ही राम बनकर पृथ्वी पर राजकुमार के रूप में अवतार लिया था ।

 " पार्वती ! राम मुझे अति प्रिय हैं और मैं उनकी सेवा के लिए पृथ्वी पर अवतार लूँगा । " पार्वती ने इसका विरोध किया तो शिव ने कहा कि वे अवतार रूप में केवल अपना एक अंश पृथ्वी पर भेजेंगे । शिव ने वानर रूप में जन्म लेने का निश्चय किया क्योंकि वानर विनम्र जीव है और उसकी जीवनशैली एवं आवश्यकताएँ अत्यंत साधारण हैं तथा उसे जातिगत व जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से संबंधित नियमों का पालन करने की जरूरत नहीं होती । ऐसा करने से , उन्हें सेवा करने का भरपूर अवसर मिलेगा । 

शुरू में पार्वती यह सुनकर चौंक गईं परंतु फिर शिव ने उन्हें यह कहकर आश्वस्त कर दिया कि माया के प्रलोभन से बचने के लिए वानर रूप सबसे उपयुक्त है । पार्वती ने उनके साथ चलने की इच्छा व्यक्त की और उनकी पूँछ बन गई क्योंकि जिस तरह पत्नी , पुरुष का आभूषण होती है , वही स्थान वानर के लिए उसकी पूँछ का होता है । शिव इस बात पर सहमत हो गए और इसीलिए हनुमान की पूँछ इतनी सुंदर है क्योंकि उसमें देवी पार्वती की शक्ति विद्यमान है ।

दूसरी हनुमान जी के जन्म की कथा

 एक अन्य कथा यह है कि रावण और कुंभकर्ण , शिव के दो सेवकों के अवतार थे इसलिए शिव उनकी रक्षा करने के लिए बाध्य थे । परंतु ब्रह्मा से प्राप्त वरदानों के कारण वे दोनों अहंकारी हो गए तथा देवताओं को परेशान करने लगे । फिर सभी देवता सहायता के लिए शिव के पास गए । जब रावण ने मृत्यु के देवता , महाकाल तथा शनि ग्रह को बंदी बना लिया तो शिव को बहुत क्रोध आया । यह भी एक कारण था कि उन्होंने हनुमान के रूप में अवतार लेने का निश्चय किया । मनु स्वयंभू के समय , शिलाद नाम के एक ऋषि ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया और शिव के जैसा ही पुत्र पाने की प्रार्थना की ।

 शिव ने उसकी प्रार्थना मान ली और उनके ग्यारहवें अवतार ने नंदी नाम से उस ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया । बाद में उस पुत्र ने तपस्या की और बैल के रूप में शिव भक्त बनने का वरदान माँगा । जिस दौरान रावण पृथ्वी पर चारों ओर उपद्रव मचा रहा था , उस समय वह कैलाश पर जाने का दुस्साहस कर बैठा । जब नंदी ने उसे प्रवेश करने से रोका तो रावण ने उपहास किया और यह कहकर ताना मारा कि नंदी का चेहरा वानर से मिलता है ! 

तब नंदी ने रावण को शाप दिया कि एक वानर के कारण ही उसका अंत होगा । बाद में , नंदी ने शिव से प्रार्थना की कि वे उसे पृथ्वी पर वानरों में " बैल " याने हनुमान के रूप में जन्म लेने की अनुमति प्रदान करें । शिव पुराण में आई एक अन्य कथा के अनुसार वायुदेव ने जलंधर नामक असुर को मारने में शिव की सहाय की थी । शिव ने वायुदेव को वरदान माँगने को कहा तो उन्होंने शिव को अपने पुत्र के रूप में पाने की इच्छा व्यक्त की और शिव ने उनकी बात मान ली । रावण को मारने के लिए विष्णु को शिव की सहायता की आवश्यकता थी तो उन्होंने शिव की तपस्या की तथा उन्हें हज़ार पत्तियों वाले लाल रंग के कमल पुष्प अर्पित किए । 

शिव प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि वे पहले ही अंजना को वरदान दे चुके हैं कि वे उसके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और राम के रूप में विष्णु अवतार की सहायता करेंगे । चूंकि हनुमान के जन्म से संबंधित अनेक कथाएँ हैं , इसलिए यह स्वाभाविक है कि विभिन्न ग्रंथ उनके जन्म की तिथि भी अलग - अलग बताते हैं ।

 वास्तव में उनके जन्म की आठ भिन्न तिथियाँ मिलती हैं जो नीचे दी गई हैं । ये सभी जन्म तिथियाँ हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार हैं : 

1. चैत्र पूर्णिमा अर्थात् चैत्र माह ( मार्च - अप्रैल ) की पूर्णिमा ।

 2. चैत्र शुक्ल एकादशी अर्थात् चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का ग्यारहवाँ दिन ।

 3. कार्तिक पूर्णिमा अर्थात् कार्तिक माह ( अक्तूबर - नवंबर ) की पूर्णिमा ।

 4. कार्तिक अमावस्या अर्थात् कार्तिक माह की अमावस्या ।

 5. श्रावण शुक्ल एकादशी अर्थात् श्रावण माह ( जुलाई - अगस्त ) के शुक्ल पक्ष का ग्यारहवाँ दिन । 

6. श्रावण पूर्णिमा अर्थात् श्रावण माह की पूर्णिमा । 

7. मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी अर्थात् मार्गशीर्ष माह ( नवंबर - दिसंबर ) के शुक्ल पक्ष का तेरहवां दिन ।

 8. आश्विन अमावस्या अर्थात् आश्विन माह ( सितंबर - अक्तूबर ) की अमावस्या । 

इनमें से दो तिथियाँ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं । सबसे अधिक लोकप्रिय वसंत की सूचना देने वाली चैत्र माह की पूर्णिमा है । इस हिसाब से हनुमान का जन्म , राम के जन्म के पाँच दिन बाद होता है जो चैत्र नवमी अर्थात् चैत्र माह का नौवाँ दिन है । 

इस कारण उनका जन्मदिन उत्तरायण काल में आता है जब सूर्य उत्तर दिशा में देवताओं के निवास हिमालय की ओर बढ़ता है । राम की जन्मभूमि अयोध्या में , उनका जन्मदिन चाह महीने बाद कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है । इसे यक्ष अमावस्या भी कहते हैं । 

इससे एक बार फिर यक्षों के साथ उनके संबंध का संकेत मिलता है , जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है । यह तिथि दक्षिणायण में पड़ती है जो देवताओं का रात्रि काल माना जाता है जब सूर्य घटता हुआ मृतक - संसार याने दक्षिण की ओर बढ़ता है । इसीलिए , इसे क्षयण कहा जाता है । इन दो तिथियों के कारण , वर्ष के दोनों हिस्सों में हनुमान की पैठ मानी जाती है । एक भाग देवताओं एवं सद्गुणों से संबंधित है तथा दूसरा भाग , मर्त्य जगत एवं तात्विक गुणों से संबद्ध है ।

 ऐसा माना जाता है कि हनुमान का जन्म मंगलवार अथवा शनिवार को हुआ था और इसलिए दोनों दिन उनकी पूजा की जाती है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार ये दो दिन सबसे अशुभ समझे जाते हैं क्योंकि इन दिनों पर क्रमशः मंगल एवं शनि नामक ग्रहों का नियंत्रण रहता है । 

हनुमान की पूजा करने वाले लोग , इन दोनों ग्रहों के दुष्प्रभावों से स्वतः बच जाते हैं । राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ।। -तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

 ॐ श्री हनुमते नमः

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