विष्णु पुराण में कहा गया है कि पाताल लोक स्वर्ग लोक से कही अधिक सुन्दर है,आइए जानते है किन कारणों से पाताल लोक अधिक सुन्दर है!
एक बार नारदजी ने पाताललोक से स्वर्ग में आकर वह के निवासियों से कहा था कि "पाताल तोह स्वर्ग से भी अधिक सुन्दर है!" जहा नागगण के आभूषणों में सुन्दर प्रभायुक्त आह्रादकारिणी शुभमणिया जड़ी हुई हैं , उस पाताल को किसके समान कहे?
जहाँ तहाँ दैतय और दानवों की कन्यायो से सुशोभित पाताललोक में किस मुक्त पुरुष की भी प्रीती न होगी!जहाँ दिन में सूर्य की किरणें केवल प्रकाश ही करती है,घाम नहीं करती,तथा रात में चंद्रमा की किंरणो से शीत नहीं होता,केवल चॉँदनी ही फैलती है! जहाँ भक्ष्य,भोज्य और महापान आदि के भोगो से आनंदित सर्पो तथा दानव आदि को समय जाता हुआ भी प्रतीत नहीं होता! जगह सुन्दर वन,नदियाँ ,रमणीय सरोवर और कमलो के वन हैं, ,जहाँ नरकोकिलो की सुमधुर कूक गूँजती है एवं आकाश मनोहारी है! जहाँ पाताल निवासी दैत्य ,दानव एवं नागगण द्वारा अति स्वच्छ आभूषण,सुगंधमय अनुलेपन, वीणा, वेणु और मृंदगादि के स्वर तथा तूर्य यह सब एवं भाग्यशालियों के भोगने योग्य और भी अनेक भोग भोगे जाते है!
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पातालों के नीचे विष्णु भगवान का शेष नामक जो तमोमय विग्रह है उसके गुणों के दैत्य अथवा दानवगण भी वर्णन नहीं कर सकता! जिन देवर्षि पूजित देव का सिद्धगण 'अनन्त' कहकर बखान करते है, वे अति निर्मल,स्पष्ट स्वरितक चिहनों से विभूषित तथा सहस्त्र सिरवाले हैं ! जो अपने फणों की सहस्त्र मणियों से सम्पूर्ण दिशाओं को देदीप्यमान करते हुए संसार के कल्याण के लिए समस्त असुरो को वीर्यहीन करते रहते है! मद के कारण अरुण नयन, सदैव एक ही कुण्डल पहने हुए तथा मुकुट और माला आदि धारण किये जो अग्नियुत श्वेत पर्वत के समान सुशोभित है!मद से उन्मत हे जो नीलांबर तथा श्वेत हारों ससुशोभित होकर मेघमाला और गंगाप्रवाह से युत दूसरे कैलास पर्वत के समान विराजमान है! जो अपने हाथो में हल और उत्तम मूसल धारण किये है तथा जिनकी उपासना शोभा और वारुणी देवी स्वयं मूर्तिमती होकर करती है! कल्पांत में जिनके मुख्य से विष अग्नि शिखा के समान देदीप्यमान संकर्षण नामक रूद्र निकलकर तीनो लोकों का भक्षण कर जाता हैं व समस्त देवगणों से वन्दित शेष भगवान अशेष भूमण्डल को मुकुटवत धारण किये हुए पाताल तल में विराजमान है!उनका बल वीर्य,प्रभाव,स्वरूप (तत्व ) और रूप (आकार) देवताओं से भी नहीं जाना और कहा जा सकता! जिनके फणों की मणियो की आभा से अरुण वर्ण हुई यह समस्त पृथवी फलों की माला के समान रखी हुई है!उनके बल वीर्य का वर्णन भला कौन करेंगा!

जिस समय मदमत्त नयन शेष जी जमुहाई लेते हैं उस समय समुद्र और वन आदि सहित यह सम्पूर्ण पृथिवी चलायमान हो जाती हैं ! इनके गुणों के अंत गंधर्व,अप्सरा,सिद्ध,नाग और चारण आदि कोई भी नहीं पा सकते;इसलिए ये अविनाशी देव "अनन्त' कहलाते हैं ! जिनका नाग वधुओं द्वारा लेपित हरिचंदन पुनः पुनः श्वास वायु से छूट-छूटकर दिशाओं को सुगन्धित करता रहता है! जिनकी आराधना से पूर्वकालीन महर्षि गर्ग ने समस्त ज्योतिर्मण्डल (गृह-नक्षत्र आदि) और शकुन-अपशकुन आदि नैमित्तिक फलों को तत्वतः जाना था! उन नाग श्रेष्ठ शेषजी ने इस पृथवी को अपने मस्तक धारण किया हुआ हैं , जो स्वयं भी देव,असुर और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण लोकमाला (पाताल आदि समस्त लोकों ) को धारण किये हुए है! विष्णु पुराण में नारदजी द्वारा नरक लोक का यह सुन्दर चित्रण किया गया है,जो स्वर्ग लोक से अति सुन्दर है!
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रावण