Historical form of Hanuman, हनुमानजी का ऐतिहासिक स्वरूप

 महावीराय नमः 

हनुमान का ऐतिहासिक स्वरूप,किष्किंधा कांड से हनुमान जी की कथा का आरंभ,रावण ने क्या वरदान मांगा था,हनुमान जी का जन्म,राम जी के बाद हनुमान कहा रहने लगे आदि


महावीर 

हनुमान का ऐतिहासिक स्वरूप 


मोरे मन प्रभु अस बिस्वासा । 

राम ते अधिक राम कर दासा ।। 

प्रभु , मेरे मन में यह पूर्ण विश्वास है , 

कि राम के दास , राम से भी श्रेष्ठ हैं । 

-तुलसीदास कृत रामचरितमानस 


वानर देव हनुमान से हमारी पहली भेंट वाल्मीकि कृत महान ग्रंथ रामायण में होती है । हिंदू संस्कृति में इसका विशिष्ट स्थान है क्योंकि इसमें राम को आदर्श पुरुष तथा सीता को आदर्श स्त्री के रूप में दर्शाया गया है । समस्त पुराणों में , यही एक ग्रंथ है जिसने न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में लोगों की कल्पना को आकर्षित किया है , अपितु सुदूर पूर्व के अनेक देशों की संस्कृतियों पर भी इसके दूरगामी प्रभाव हुए हैं । 

हनुमान जी का रहस्य, जन्म का रहस्य,पांच मुख वाला रूप रहस्य
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वास्तव हिंदू साहित्य के अनेक पुराणों में से एक रामायण ही शायद एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिससे प्रत्येक हिंदू परिचित है । भारत में ऐसे अनेक संत हैं जिन्होंने सिर्फ राम नाम जपने से आत्म - ज्ञान प्राप्त किया है । हनुमान इसके उत्कृष्ट उदाहरण है । वे राम के श्रेष्ठ दूत , योद्धा और दास थे । उनका जीवन केवल राम की सेवा के लिए समर्पित था । वास्तव में वे इस महाकाव्य के इतने अभिन्न अंग हैं कि यह कहावत , “ जहाँ राम की कथा होती है , वहाँ हनुमान होते हैं " , सामान्य तौर पर दोहराई जाती है । हालाँकि , यह अनुमान का विषय है कि यह शानदार प्राणी वेदों या पुराणों में बिना किसी पूर्व दृष्टांत के वाल्मीकि के महाकाव्य में अचानक कैसे प्रकट हो गया । 

किष्किंधा कांड से हनुमान जी की कथा का आरंभ:-

रामायण में राम की सहायता हेतु आया , यह असाधारण प्राणी पहली बार किष्किंधा कांड में प्रकट हुआ था , जो रामायण का ही भाग है । इन्हें वहाँ पर वानर या बंदर कहा गया था । परंतु निश्चित ही वे साधारण वानर नहीं थे । इनमें ज़बरदस्त ताक़त थी और इनके पास अलौकिक शक्तियाँ तथा अपनी इच्छा से अपना रूप बदलने की क्षमता थी । यद्यपि वैदिक साहित्य में , वाल्मीकि के राक्षसों का पहले भी उल्लेख है , लेकिन उनके वानर नहीं । 

रावण ने क्या वरदान मांगा था:-

रावण ने यह वरदान माँगा था कि कोई देवता अथवा कोई अन्य अलौकिक प्राणी उसे न मार सके परंतु उसने अपनी सूची में मनुष्यों और बंदरों का उल्लेख नहीं किया था क्योंकि वह उन्हें अपनी अपेक्षा से अधिक तुच्छ समझता था । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इसी विशेष आवश्यकता की पूर्ति के लिए वानरों की रचना की गई थी । राम की सहायता के लिए उनके कई नेताओं का जन्म देवताओं की मदद से वानर स्त्रियों द्वारा हुआ था । इस प्रकार हनुमान एक वानर थे । वे विकास की ऐसी अवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं जो चांडाल अथवा बहिष्कृत जाति से निम्न श्रेणी की है । वे अपने चरित्र की शक्ति और एकनिष्ठ समर्पण के द्वारा देवता के पद तक जा पहुँचे । इस कथा में हम देखते हैं कि हनुमान , वानरी चपलता के साथ मानवीय बुद्धिमत्ता , वाक्पटुता , समर्पण और ऊर्जा का मिश्रण हैं तथा अंत में , वे इस महाकाव्य के सबसे पेचीदा और आकर्षक पात्रों में से एक बनकर उभरते हैं । क्या वे वाल्मीकि की प्रतिभावान रचना थे अथवा किन्हीं अन्य पुराणों या वेदों में उनका उल्लेख मिलता है जो सदा से दैविक गाथाओं के भंडार रहे हैं ? 

हनुमान जी को रहस्य क्यों माना जाता है:-

कुछ लोग कह सकते हैं कि वे इसलिए महान थे क्योंकि वे वायुदेव के पुत्र थे । यदि यह सत्य है तो महाभारत में सभी पांडवों को देवता माना जाना चाहिए था क्योंकि वे देवताओं के पुत्र थे , परंतु उनमें से कोई भी हनुमान जितना श्रेष्ठ नहीं बन पाया । हम पांडवों को मनुष्य ही मानते हैं लेकिन कोई भी व्यक्ति , हनुमान को वानर अथवा मनुष्य नहीं मानता । उन्हें भगवान माना जाता है ! वास्तव में , वाल्मीकि ने हनुमान के आरंभिक जीवन का वह चित्र हमारे सामने प्रस्तुत नहीं किया , जिससे उन्हें देवता माना जा सकता था । उनके इस रूप की कल्पना का अनुमान उनकी आदर्श छवि से लगाया जाता है । आध्यात्मिक उत्कृष्टता प्राप्त करने का रहस्य हनुमान स्वयं समझाते हैं । 

न मन्त्रादिकृतिस्तता , 

न च नैसर्गिको ममा ,

 प्रभवा ईशा सामान्यो ,

 यस्य यस्यचुतो हृदी ।


 हनुमान बिलकुल स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि उनकी महानता का कारण उनकी जन्मजात साधारण वानर प्रवृत्ति नहीं बल्कि उनका निरंतर प्रयासरत रहना है । ब्रह्मज्ञान सभी के लिए संभव है । मोक्ष या मुक्ति प्रत्येक जीव का जन्मसिद्ध अधिकार है । अपने मामले में , हनुमान यह कहते हैं कि उनका समस्त आध्यात्मिक उत्थान भगवान के प्रति एकनिष्ठ समर्पण के कारण हो पाया है । जो सतत रूप से परमात्मा का चिंतन करता है , वह स्वयं परमात्मा हो जाता है । ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण ही आध्यात्मिक उत्कृष्टता का रहस्य है । 

Historical form of Hanuman, हनुमानजी का ऐतिहासिक स्वरूप
Historical form of Hanuman, हनुमानजी का ऐतिहासिक स्वरूप 
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मंत्रों के उच्चारण मात्र से या मंदिरों में चढ़ावा देने अथवा ऊपरी अनुष्ठानों से आध्यात्मिक रूपांतरण नहीं हो सकता । इसे वंशानुगत तरीके से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता । कोई शिशु , चाहे वह देवता से उत्पन्न हुआ हो अथवा मनुष्य से , फिर भी वह रहता तो जीव ही है । विकास से केवल शारीरिक वृद्धि होती है । प्रयास के बिना आध्यात्मिक विकास असंभव है । उच्च श्रेणी के विकास के लिए ज्ञान और अनुशासन आवश्यक है । ईश्वर का निमित्त बनाकर , किसी अपूर्ण देह को भी पूर्ण बनाया जा सकता है । ऐसा करने से हमारे दोष भी लाभकारी बन जाते हैं । 

जब समग्र व्यक्तित्व परमात्मा में परिवर्तित होता है , तो उसकी त्रुटियाँ भी लाभकारी बन जाती हैं । इससे हमें पता चलता है कि वे अपने वानर स्वभाव के चलते ही समुद्र पार कर पाए , लंका पहुँच पाए , सीता को खोज पाए और लौटकर उनका संदेश राम को सुना सके । उनके पास निजी मनोरंजन का कोई तरीक़ा नहीं था । उनके कार्यों के सुपरिणाम सदैव दूसरों को मिलते थे । इस तरह , वाल्मीकि ने हनुमान के रूप में एक शानदार पात्र को चित्रित किया है , जो मुक्ति की कामना रखने वाले लोगों के लिए आदर्श रूप है । सच्चे , व्यावहारिक तथा देवत्वारोपण में सक्षम पात्रों की रचना करने की तकनीक में वाल्मीकि , महर्षि व्यास से भी श्रेष्ठ हैं । रामायण के पात्र ऐतिहासिक यथार्थवाद एवं धार्मिक प्रतीकवाद का मंगलमय संयोग दर्शाते हैं जो धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह के लोगों को पसंद आता है ।

 अपवाद स्वरूप कृष्ण को छोड़कर महाभारत में और किसी को अपनी के लिए व्यास तथा अनेक अवसरों पर उन्हें चमत्कार करने और अपने अलौकिक रूप को प्रदर्शित करने की अनुमति देते हैं । हालाँकि , वाल्मीकि द्वारा किया गया राम का चित्रण सादा है तथा उसमें किसी तरह अलंकरण नहीं है । उन्होंने अपने काव्य को रहस्यवाद का दास नहीं बनने दिया । राम " मर्यादा पुरुष " हैं , आदर्श हैं , जो लौकिक धर्म के प्रति अपने आदर्श अनुपालन के कारण भगवान बन गए तथा हनुमान एक साधारण वानर हैं , परंतु वे भी राम के प्रति अपने अटूट समर्पण और कर्तव्य के प्रति असाधारण सजगता के चलते भगवान का पद पा गए । हिंदू मान्यता के अनुसार ' परलोक ' में कोई वस्तुनिष्ठ जगत नहीं है । संपूर्ण व्यक्त संसार हमारे अपने द्वारा बनाया गया व्यक्तिपरक दृश्य है । हम मनुष्यों के पास अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की अनूठी क्षमता है । 

जीवन के प्रति दृष्टि:-

दूसरे शब्दों में , हमारे पास जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने का सामर्थ्य मौजूद है । हम जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलकर , अपने संसार को बदल सकते हैं । जब हनुमान ने राम के जीवन में प्रवेश किया तो राम की दुनिया बदल गई । उन्होंने संसार को रावण से मुक्ति दिलाने के लिए एक संकट को ( सीता का हरण ) अवसर में बदल दिया । उन्होंने एक पीड़ित व्यक्ति को नायक बना दिया । 

हनुमान जी के पिता कौन हैं:-

हालाँकि हनुमान का वेदों में कोई उल्लेख नहीं है , किंतु जिन दो देवताओं को , वे अपना पिता मानते हैं - पवन के देवता वायु और संहार के देवता रुद्र - उन दोनों का उल्लेख वेदों में मिलता है । रुद्र एक तथा अनेक दोनों हैं और वे कालांतर में आने वाले पौराणिक शिव का प्रारूप हैं । वायु के साथ हनुमान का संबंध उनकी चपलता द्वारा दर्शाया जाता है । 

आयुर्वेद याने उपचार के वैदिक विज्ञान में , रोग को शरीर में तीन तत्वों - वात , पित्त और कफ़ - का असंतुलन माना जाता है । इन तीनों में वात याने वायु शरीर की देखभाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । गठिया , थक्का , मिरगी और लकवा ( पक्षाघात ) समेत अनेक रोग शरीर में वायु तत्व की अधिकता के कारण होते हैं । 

हनुमान का इस आवश्यक तत्व के साथ घनिष्ठ संबंध है और इसे बाद में उनकी विशिष्टताओं के चित्रांकन में दर्शाया गया है । वायु पुत्र और वात्मज उनके कुछ महत्त्वपूर्ण नाम हैं । शरीर के सभी कार्य पाँच प्रकार की वायु द्वारा नियंत्रित होते हैं - प्राण , अपान , व्यान , समान और उड़ान । ये सभी शरीर के विभिन्न स्वचालित प्रकार्यों जैसे श्वसन , पाचन , निष्कासन आदि का ख़याल रखते हैं जिनके बारे में हम अवगत नहीं होते । 

हनुमान जी का पांच सिर वाला रूप:-

हनुमान का एक रूप है जिसमें उनके पाँच सिर दिखाए गए हैं , जो पाँच प्रकार की वायु का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसलिए ऐसा कहा जाता है कि वे हमारे अनैच्छिक कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं तथा उनकी भक्ति से हमें स्वास्थ्य प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त निश्चित रूप से , हनुमान का वर्तमान चित्र , वाल्मीकि कृत रामायण के आने के बाद बना है , इसलिए हिंदू देवताओं के समूह में उनका आगमन हाल ही में हुआ है । वे देवताओं की दूसरी पीढ़ी ' की श्रेणी में आते हैं । हालाँकि उनके भक्त बताते हैं कि भारत के अनेक राज्यों में हनुमान के स्वामी से अधिक हनुमान के अपने मंदिर हैं । वास्तव में ब्रह्मा , विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति में से केवल शिव ही हैं , जिनकी संतान को प्रभुत्व प्राप्त हुआ है और यहाँ तक की कुछ मामलों में , अपने माता - पिता का उच्च पद उन्होंने स्वयं प्राप्त कर लिया है । शिव के तीन प्रमुख पुत्र गणेश , कार्तिकेय और धर्मषष्ठ अथवा अयप्पा हैं । हनुमान भी शिव का पुत्र होने का दावा करते हैं । 

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वास्तव में , जैसा कि पहले बताया गया है , उन्हें ग्यारहवां रुद्र माना जाता है । रावण भी शिव का परमभक्त था और इसलिए यह विचित्र लगता है कि शिव का पुत्र , रावण का शत्रु बन गया । इस विशिष्ट दुविधा से संबंधित कथा यह है कि रावण ने शिव को अपने दस सिर चढ़ाए थे किंतु उसने ग्यारहवें रुद्र को प्रसन्न नहीं किया क्योंकि उसके पास चढ़ाने के लिए एक और सिर नहीं था ! शिव के सभी पुत्रों ने भारतीय मानसिकता को काफ़ी आकर्षित किया है । 

गणेश को सार्वभौमिक रूप से मान्यता क्यों प्राप्त है:-

गणेश को सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त है तथा सभी हिंदू समुदाय उनकी पूजा करते हैं । उन्होंने समुद्र पार की भी यात्रा कर ली है और आपको पश्चिम में भी गणेश के अनेक भक्त मिल जाते हैं । कार्तिकेय भी किसी समय उत्तर में काफ़ी प्रचलित थे लेकिन अब उनके मंदिर विशिष्ट रूप से दक्षिण में और श्रीलंका में पाए जाते हैं । उन्हें दक्षिण में स्कंद , मुरुगन और स्वामीनाथन भी कहा जाता है । अयप्पा का आगमन बहुत बाद में हुआ है । उनका प्रमुख मंदिर शाबरी पहाड़ नामक स्थान पर सिर्फ़ केरल में था । वे कलियुग के देवता हैं क्योंकि उन्हें , शिव और विष्णु दोनों से उत्पन्न माना जाता है और उनके पास दोनों की शक्तियाँ हैं । दक्षिण के अनेक राज्यों में उनकी ख्याति फैल रही है और अब उनके मंदिर दिल्ली में भी मिल जाते हैं । 

दूसरी ओर , हनुमान उत्तर में अधिक प्रचलित थे क्योंकि वे तुलसीदास की रामचरितमानस के लगभग नायक हैं , जो अधिकांश हिंदी भाषी लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ी जाती है । परंतु अब हम देखते हैं कि धीरे - धीरे दक्षिण में भी हनुमान की पूजा होने लगी है । किसी समय में , हनुमान के अलग से मंदिर नहीं होते थे परंतु अब दक्षिण में नमक्कल तथा सुचिंद्रम स्थानों पर उनके कुछ सबसे बड़े मंदिर पाए जाते हैं । 

हनुमान में एक प्रकार की प्रतिभा है , जो दूसरी पीढ़ी के अन्य देवताओं से अधिक है । गणेश में अन्य विशेषताएँ हैं लेकिन वे , हनुमान की तरह , अनंत दया और आत्म - बलिदान अथवा कठोर तपस्या की प्रतिमूर्ति नहीं हैं । हनुमान को शिव और विष्णु दोनों खेमों का माना जाता है । उनके पिता शिव हैं और वे राम के रूप में विष्णु के अवतार के सबसे बड़े भक्त हैं । इसलिए वे शैव तथा वैष्णव दोनों समूहों में अत्यंत प्रचलित हैं । शिव के अन्य पुत्रों की तरह , उनके जन्म की भी अनेक कथाएँ हैं । पहले बताया जा चुका है कि गणेश को उत्तर और दक्षिण भारत में सर्वत्र पसंद किया जाता है और शायद वे सबसे अधिक प्रचलित हैं । हालाँकि , लोकप्रियता के मामले में हनुमान उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी हैं , तथापि गणेश का पलड़ा संभवतः थोड़ा भारी है क्योंकि पुराणों में ऐसा कहा गया है कि किसी भी कार्य को करने से पूर्व गणेश की पूजा करना आवश्यक है । निस्संदेह , हनुमान ' विशेषज्ञ ' हैं और लोग उनके पास विशिष्ट प्रकार की सेवाओं के लिए जाते हैं । 

वे सभी प्रकार की अपशकुनों और ख़राब ग्रह दशाओं को दूर करने में सक्षम हैं और इसलिए धीरे - धीरे उनका प्रभुत्व बढ़ रहा है । हम ऐसा देखते हैं कि महाराष्ट्र में , जो मुख्य रूप से गणेश की पूजा करने वाला राज्य है , गणेश के मंदिरों की अपेक्षा मारुति के मंदिर चार गुना अधिक मात्रा में मौजूद हैं । अनेक विद्वानों का मत है कि हनुमान पूजा दरअसल यक्ष पूजा का ही परिणाम है । यक्षों को पृथ्वी की संपत्ति का रक्षक माना जाता है और वे अपनी ताक़त और फुर्ती के लिए जाने जाते हैं । उनकी मूर्तियाँ प्रायः मंदिरों के बाहर द्वारपाल तथा गाँवों के बाहर क्षेत्रपाल के रूप में बनाई जाती हैं । 

राम जी के बाद हनुमान कहा रहने लगे:-

आजकल , मंदिरों और गाँवों के बाहर यक्ष के स्थान पर हनुमान की मूर्तियाँ देखने को मिलती हैं । यक्षराज कुबेर को सदा हाथ में गदा लिए दर्शाया जाता है और हनुमान के पास भी यही अस्त्र होता है । राम के धरती से चले जाने के बाद , हनुमान हिमालय में चले गए और वहाँ उन्होंने अपने रहने के लिए , यक्षों के सरोवर के समीप का स्थान चुना , जिससे यक्षों के प्रति उनके लगाव का पता लगता है । यहीं उनकी भेंट उनके सौतेले भाई - भीम से हुई थी । सिंधु सभ्यता में हुई खुदाई के दौरान बहुत - सी वानर प्रतिमाएँ मिली थीं , जिससे उस काल में वानर देवता की पूजा के संकेत मिलते हैं हालाँकि ये संकेत बहुत थोड़े हैं । ऋग्वेद की संहिताओं एवं शतपथ ब्राह्मण में हनुमान के अनेक संदर्भ दिए गए हैं ।

 कुछ ऋचाओं में रामायण की घटनाओं का भी उल्लेख है । ऋग्वेद के एक पद्यांश में वृषकपि नाम के पीले - भूरे रंग के वृष - वानर का उल्लेख मिलता है । इंद्र की पत्नी , यह शिकायत करती है कि वह वानर वैदिक आहुति में से उसके पति का भाग छीन लेता था । हरिवंश पुराण में भी वृषकपि नाम आया है , जहाँ उसे रुद्र का ग्यारहवां अवतार बताया गया है । 

यह , महाभारत में विष्णु सहस्त्रनाम ( विष्णु के एक हज़ार नाम के अंतर्गत , विष्णु का भी एक नाम है । लिखित प्रमाणों के अनुसार हनुमान की पूजा केवल एक हज़ार वर्ष पहले आरंभ हुई है और इसलिए भारतीय विद्या के जानकारों के अनुसार हनुमान अभी बालक हैं । वास्तव में , उनके रूप की सबसे महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति पिछली कुछ शताब्दियों में ही हुई है ।

यद्यपि हनुमान पर सबसे अधिक सामग्री पुराणों में मिलती है । अग्नि , विष्णु , कूर्म , गरुड़ , ब्रह्मवैवर्त , नरसिंह , कल्कि तथा भागवत पुराणों में उनके नाम का उल्लेख मिलता है । अग्नि पुराण में हनुमान की छवि बनाने संबंधी निर्देश दिए गए हैं जिसमें वे पैरों व हाथों से एक असुर को दबा रहे हैं तथा उनके एक हाथ में वज्र है । अहिरावण की विस्तृत कथा , जो वाल्मीकि के महाकाव्य में नहीं है , शिव पुराण में मिलती है । 


शिव पुराण में हनुमान के जन्म से संबंधित एक अन्य कथा है:-

शिव पुराण में हनुमान के जन्म से संबंधित एक अन्य कथा है , जिसमें हनुमान की माँ को शिव के अंश से गर्भवती होते बताया है और इस नाते हनुमान , भगवान शिव का अंश माने जाते हैं । एक अन्य पद्यांश में उन्हें रुद्र का अवतार कहा गया है । स्कंद , पद्म और नारदीय पुराण में शिव के साथ उनका संबंध उल्लिखित है । अंतिम पुराण में हनुमान की पूजा का मंत्र भी दिया हुआ है तथा किसी प्रतीक की जगह यंत्र का विवरण है । उसमें यह भी लिखा है कि इस मंत्र द्वारा ऊर्जान्वित जल में भूत - प्रेतों को भगाने और ज्वर एवं मिरगी जैसे रोगों को ठीक करने का सामर्थ्य है । इसी ग्रंथ में हनुमान को शास्त्रीय संगीत का संस्थापक बताया गया है और संगीतकारों को यह राय दी गई है कि उन्हें संगीत में प्रवीण होने के लिए हनुमान की पूजा करनी चाहिए । इस पुराण में हनुमान को शिव एवं विष्णु की संयुक्त शक्ति का अवतार कहा गया है । हालाँकि , यह सही है कि अधिकतर पुराणों में हनुमान का उल्लेख नहीं है और यदि है , तो भी , वह केवल रामायण की कथा को दोहराने के संदर्भ में मिलता है ।

 एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि हनुमान का उल्लेख अधिकांश रूप से शिव से संबंधित पुराणों में मिलता है । प्राचीन काल से ही शैवपंथी , हनुमान पूजा के समर्थक रहे हैं । शिव की भाँति हनुमान में भी तपस्वी के गुण हैं और उन्हें कीर्ति व ऐश्वर्य की चिंता नहीं है । शैवपंथी ऐसा मानते हैं कि शिव और विष्णु , दुराचारी रावण को मारने के लिए , जिसने शिव द्वारा दी गई शक्तियों का दुरुपयोग किया , हनुमान व राम के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे । हनुमान के बिना राम असहाय थे । मारुति ने ही सीता को खोजा , लंका तक पुल बनाया और रावण को मारने में राम की सहायता की । परंतु हनुमान ने अपने लिए कभी किसी सम्मान की माँग नहीं की और वे सदा राम की परछाईं में रहे । योगियों को उनके गुण बहुत लुभाते हैं । वे भौतिक रूप से अमर हैं और अनेक जड़ी - बूटियों से उनका गहरा संबंध है तथा वे ऐसी अनेक सिद्धियों के स्वामी हैं , जिनकी योगियों को तलाश रहती है । उन्हें कठोर ब्रह्मचारी भी माना जाता है । अपने असाधारण बल और फुर्ती के चलते , पहलवान और धावक भी उनकी पूजा करते हैं । विष्णु के भक्त , हनुमान को , विष्णु के छठे अवतार राम के भक्त के रूप में स्वाभाविक रूप से पूजते हैं । देवी माँ के भक्त याने शाक्त भी हनुमान की पूजा करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सीता को राम से मिलवाने के कारण देवी , हनुमान से बहुत प्रसन्न हो गई थीं । मायावी महिरावण को मारकर उसका रक्त काली को अर्पित करने के कारण काली माँ भी उनसे बहुत प्रसन्न थीं । वे स्त्रियों की शुचिता के रक्षक कहे जाते हैं क्योंकि उन्होंने कभी किसी स्त्री को कामुक दृष्टि से नहीं देखा । तांत्रिक परंपरा में हनुमान को आदर्श तांत्रिक के रूप में देखा जाता है , जिन्होंने आठों सिद्धियाँ ( अलौकिक शक्तियाँ ) प्राप्त कर ली थीं । 

राम को मायावी महिरावण से छुड़ाने के बाद से हनुमान को जादू - टोने में भी निपुण माना जाता है और यह भी विश्वास है कि हनुमान लोगों को काले जादू से बचा सकते हैं । वेदांत में हनुमान को भक्ति के साकार रूप में देखा गया है । उन्होंने रावण ( अहंकार ) का संहार करने के बाद सीता ( जीवात्मा ) को राम ( परमात्मा ) से मिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । 

भारत के पूर्वी तट से आने वाले व्यापारियों के जहाजों के साथ हनुमान की कथाएँ दक्षिण पूर्व एशिया तक जा पहुँचीं । प्राचीन कम्बोडिया , वियतनाम , थाईलैंड , म्यांमार , बाली और मलेशिया की चित्रकला में राम और हनुमान बहुत लोकप्रिय हैं । बौद्ध भिक्षु इस वानर - शूरवीर की कथा को चीन तक ले गए जहाँ हनुमान को सुनहरे वानर के रूप में बहुत लोकप्रियता मिली । हालाँकि इन देशों में इनका चरित्र भारतीय मारुति से बिलकुल अलग है । वहाँ उन्हें विलासी जीवन में लिप्त दिखाया गया है और वे देवताओं समेत लोगों को डराते हैं । अंत में स्वयं भगवान बुद्ध ने उन्हें शिक्षा दी । 

हनुमान को राम कथा का वास्तविक कथावाचक माना जाता है । वे न केवल उन घटनाओं के साक्षी हैं , जिनका उन्होंने उल्लेख किया है , बल्कि इस कथा को सुनाने का उनका एकमात्र उद्देश्य भगवान राम की स्तुति करना था । हालाँकि परंपरा यह कहती है कि यह कथा मनुष्य कथावाचकों जैसे वाल्मीकि , कंपन , तुलसीदास आदि की परिकल्पना से छनकर टुकड़ों में ही जीवित रह पाई है । जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।। (तुलसीदास)

 ॐ श्री हनुमते नमः

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