विष्णु पुराण में क्या लिखा है, उसका महत्व क्या है और श्वण या पढ़ने के क्या लाभ है! आइये जानते है विष्णु पुराण के किस अंश में क्या लिखा है!


विष्णु पुराण में क्या लिखा है, उसका महत्व क्या है और श्वण या पढ़ने के क्या लाभ है! आइये जानते है विष्णु पुराण के किस अंश में क्या लिखा है!

|| ॐ श्री गणेशाय नमः|| 
||ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः || 

विष्णुपुराण का स्वरूप और विषयानुक्रमणिका:-

श्रीब्रह्माजी कहते हैं- वत्स! सुनो,अब मैं वैष्णव महापुराण का वर्णन करता हूँ! इसकी श्लोक संख्या तेइस हज़ार है! यह सब पातको का नाश करने वाला है! इसके पूर्वभाग में शक्तिनंदन पराशरजी मैत्रेय को छह अंश सुनाये है,उनमें से प्रथम अंश में इस पुराण की अवतरणिकी दी गयी है! आदिकाल सर्ग,देवता आदि की उत्पति, समुंदर मंथन की काठ, दक्ष आदि के वंश का वर्णन, धुर्व था पृथु के चरित्र, प्राचेतस का उपाख्यान, प्रलाह्द की काठ और ब्रह्माजी के द्वारा देव, तिर्यक, मनुष्य आदि वर्गो के प्रधान-प्रधान व्यकितयों को पृथक-पृथक राज्याधिकार दिए जाने का वर्णन-इन सब विषयों को प्रथम अंश कहा गया है!


प्रियव्रत के वंश का वर्णन, दीपों और वर्षो का वर्णन, पाताल और नरकों का कथन, साथ स्वर्गो का निरूपण, पृथक-पृथक लक्ष्णों से युक्त सूर्य आदि ग्रहो की गति का प्रतिपान, भरत-चरित्र,मुक्तिमार्ग-निदर्शन था निदाघ एवं ऋभु का संवाद-ये सब विषय द्वितीय अंश के अंतर्गत कहे गया है!



मन्वन्तरों का वर्णन,वेदव्यास का अवतार त्तथा इसके बाद नरक से उध्दार करनेवाला कर्म कहा गया है! सगर और और्व  संवाद में सब धर्मो का निरूपण,शरधाकल्प वर्ण श्रमधर्म, सदाचार-निरूपण त्त मायामोह की काठ-यह सब विषय तीसरे अंश में बताया गया है,जो सब पापों का नाश करनेवाला है! मुनिश्रेष्ठ! सूर्यवंश पवित्र काठ, चन्द्रवंश का वर्णन त्त नाना प्रकार के राजाओं का वृतांत चतुर्थ अंश के अंर्तगत है!



श्रीकृष्ण अवतार विषयक प्रश्न,गोकुल की काठ,बाल्यावस्था श्री कृष्ण द्वारा पूतना आदि का वध, कुमारावस्था में अघासुर आदि की हिंसा, किशोरावस्था में उनके द्वारा कंस का वध, मथुरापुरी की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलाएँ, समस्त दैत्यों वध, भगवान् के पृथक-पृथक विवाह, द्वारका में रहकर योगीश्वरों के भी ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा शत्रुओ वध आदि के साथ साथ पृथ्वी का भर उतारा जाना और अष्टावक्रजी का उपाख्यान-यह सब बाते पाँचवे अंश के अंतर्गत है!


कलियुग का चिरत्र, चार प्रकार के महाप्रलय त्त केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्र्हाज्ञान का उपदेश इत्यादि विषयों को छठा अंश में कहा गया है! इसके बाद विष्णुपुराण का उत्तर भाग प्रारंभ होता है, जिसमें शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन "विष्णुधर्मोत्तर" नाम से प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मो की कथाये कही है! अनेकानेक पुण्य-व्रत, यम-नियम,धर्मशास्त्र, अर्थशास्र, वेदांत, ज्योतिष, वंश वरण के प्रकरण, स्त्रोत्र, मंत्र तथा सब लोगों का उपकार करनेवाली नाना प्रकार की विघाएं सुनाई है! यह विष्णुपुराण है,जिस में सब शास्त्रों के सिद्धांत का संग्रह हुआ है! इसमें वेदव्यासजी ने वाराहकल्प का वृतांत कहा है! 


जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को सुनते और पढ़ते है,वे दोनों यहाँ मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में चल जाते है!जो स पुराण को लिखवाकर या स्वयं लिखकर आषाढ़ की पूर्णिमा को घृतमयी धेनु के साथ पुरानार्थवेत्ता विष्णुभक्त ब्राहाण को दान करता है,वह सूर्य के समान तेजस्वी विमान द्वारा  वैकुण्ठधाम में जाता है! ब्र्हान ! जो विष्णूपूजन की इस विष्यानुक्रमणिका को कहता अथवा सुनता है,वह समूचे पुराण के पठन एवं श्रवण का फल पाता  है!
https://mysteriousvedandpuranas.blogspot.com/

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